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आन रोड चूत बजाई सहकर्मी की

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आपको बता दूँ कि मेरी ये नयी सेक्स कहानी मेरे और मेरे ऑफिस में काम करने वाली एक सुनीता नाम की लड़की की है, जिसका पति मर चुका था. उसके पति के न होने की बात मुझे बहुत बाद में पता चल सकी थी. ये घटना करीब 8 साल पुरानी है.

सुनीता एक बहुत हसीन और चपल लड़की थी. वो देखने में अत्यंत आकर्षक और मदमस्त थी. उसकी मुस्कान ऐसी थी कि किसी की भी नींद चैन उड़ा दे.

सुनीता की काली आंखें, लाली भरे होंठ, उसके 36c के मोटे और रसीले चुचे, चुचों के बीच एक गहरी नाली, पेट में भंवर बनाती गहरी नाभि, सेक्सी उभरी हुई 38 साइज की गांड और कमर पर दो गड्डे, जो उसको सेक्स की देवी मानने को मज़बूर कर देते हैं.

आप उसकी इस देहयष्टि से अनुमान लगा सकते हैं कि सुनीता एक ऐसी महिला थी जिसको देख कर किसी भी मर्द का लंड फड़फड़ा कर खड़ा हो जाए. उसे देख कर हर महिला को जलन होने लगे कि ये इतनी हसीन कैसे है.

सुनीता जब मेरे दफ्तर में नौकरी के लिए आयी, मैंने तभी मन बना लिया था कि कैसे भी करके, इसकी चुत जरूर लेनी है. उसकी सैलरी भी मुझे ही फाइनल करनी थी, तो मुझे उसके बारे में ज्यादा जानने का मौका मिला.

मैंने उसको 15000 की ऑफर दी, जिसके लिए उसने कहा कि वो रोज़ नोयडा से दिल्ली आएगी, उसका एक बेटा भी है, वो खुद भी कोई एग्जाम की तैयारी कर रही है और इतना सब इतने से पैसों में कैसे होगा.

मैंने भी मौका देखते हुए उसको कह दिया कि फ़िक्र ना करो, इंसेंटिव तो मुझे ही देना है, मैं सब संभाल लूंगा. तुम बस मेरा ख्याल रखना.

सुनीता- मेरा ख्याल रखना मतलब?
करण- मतलब मेरे ऑफिस का … तुम क्या समझी?
सुनीता भीनी भीनी मुस्कुराती हुई बोली- कुछ नहीं.

खैर, समझदारी में तो मेरा भी कोई जवाब नहीं था. उसकी खुलासा करती हुई मुस्कान से समझ तो मैं गया ही था कि काम बन जाएगा. थोड़ा समय लग सकता है, पर बकरे की मां कब तक खैर बनाएगी.

धीरे धीरे समय बीता और हम लोग एक दूसरे के बारे में बहुत कुछ जान गए. करीब पांच महीने बाद मुझे पता चला कि वो विधवा है और उसका पति किसी पारिवारिक रंजिश में मर चुका था. मेरा मुकाम तो सुनीता की चुदाई थी और उससे मुझे कौन डिगा सकता था. मैंने अपनी फील्डिंग जारी रखी.

एक दिन सुनीता ने मुझसे एक हफ्ते की छुट्टी मांगी. उसको किसी केस के सिलसिले में जाना था और साथ ही वो कुछ एडवांस भी ले गयी.

उससे फ़ोन पर तो मेरी रोज़ बात हो ही रही थी, तो उसकी चिंता भी साफ़ झलक रही थी. उसकी बातों से पता चला कि जिस जमीन के चलते उसके पति की जान गयी थी, उसका केस वह जीत तो गयी है, पर उसको कुछ पैसों की जरूरत है, जो उसके पास नहीं थे.

उसने मुझसे पैसे मांगे, तो मैंने भी देर नहीं करते हुए उसको आने के लिए बोल दिया. वो बिना समय गंवाए शाम को ही दिल्ली ऑफिस पहुंच गयी और उसने मुझे पैसों के लिए फ़ोन किया.

चूंकि मैं किसी काम से थोड़ी देर पहले ही ऑफिस से निकला था. मैंने उसको डिनर पर मिलने को कहा.
वो बोली- मुझको रात में ही मेरठ पहुंचना होगा क्योंकि मैं अपने बेटे को वहीं छोड़ कर आयी हूँ.

मैंने डिनर की बात खत्म की और उसको 9 बजे नॉएडा के सेक्टर 18 पर मिलने को बोला.

आज मेरे अरमान पूरे हो सकते थे, पर सवाल खड़ा था कि ये कैसे होगा. वो शायद होटल में जाने को तैयार नहीं होती. पर मैंने सोचा कि आज अगर शुरुआत हो जाए, तो इसकी चुत तो कभी भी ले लूंगा. ये सोचते हुए मैंने एक कंडोम का पैकेट बाजार से ले लिया.

मैंने उसको नोयडा से लिया और गाड़ी को ग्रेटर नॉएडा एक्सप्रेस-वे पर दौड़ा दिया. थोड़ी ही देर में मैंने अपना हाथ उसकी जांघ पर रख कर उसकी जांघ को सहलाना शुरू कर दिया, जिसका उसने कोई विरोध नहीं किया. हमारे बीच बातें चल रही थीं और मेरा हाथ धीरे धीरे उसकी चुत की तरफ बढ़ रहा था.

उसने मेरी हरकत की तरफ से अपनी चुप्पी तोड़ी और बोलने लगी- ये आप क्या कर रहे हैं सर?
करण- कुछ नहीं सुनीता. तू मुझे बहुत अच्छी लगती है और आज मेरा दिल थोड़ा बेईमान हो रहा है.
सुनीता- ये सब गलत है करण सर. आप जानते हो कि मैं शादीशुदा हूँ.

करण- और ये भी जानता हूँ कि तुम्हारे पति नहीं रहे. तुम सुन्दर हो, जवान हो. तुम्हारी भी जरूरतें होंगी सुनीता. इस जवान जिस्म की भी जरूरतें होंगी. कब तक अकेले ज़िन्दगी जियोगी तुम? मैं कुछ नहीं चाहता, बस तेरे साथ थोड़ा समय बिताना चाहता हूँ, तेरे आगोश में सुनीता कुछ सुकून पाना चाहता हूँ.

सुनीता ने मेरा हाथ हटाने की नाकाम कोशिश की, पर मैंने भी हार नहीं मानी और अपना हाथ उसकी सलवार के ऊपर से उसकी चुत पर रगड़ दिया, जिससे मुझे पता चल गया कि उसकी चुत पानी छोड़ रही थी.

मैंने देर ना करते हुए अपना हाथ उसके गले में डाला और उसको अपनी तरफ खींचते हुए, उसके माथे पर एक पप्पी दे दी. इस पप्पी ने जैसे कोई जादू कर दिया और सुनीता की आवाज़ लड़खड़ाने लगी.

सुनीता- आप ये सब क्या कर रहे हो करण सर. मुझे कुछ कुछ हो रहा है.

उसका इतना कहना था कि मैंने गाड़ी कार्नर लेन में लेकर उसकी रफ्तार बहुत धीरे कर दी और अपने होंठों सुनीता के होंठों पर रख दिए. इससे पहले वो कुछ कहती, मैं एक हाथ से उसके चुचों को सहलाने लगा. कुछ ही देर में मैंने अपना लंड बाहर निकाला और उसका हाथ अपने लंड पर रख दिया, जिसको उसने थोड़े विरोध के बाद सहलाना शुरू कर दिया.

सुनीता ने कुछ ही देर लंड सहलाया होगा, मैंने उसको लंड चूसने को कहा, जिसे सुनते ही सुनीता के चेहरे की जैसे हवाइयां उड़ गईं.
सुनीता- कैसी बात करते हो करण सर. ये सब भी कोई गाड़ी में होता है.
करण- क्यों घबराती हो मेरी जान. ये तो सिर्फ शुरुआत है. आज तो मैं तुझे चलती गाड़ी में चोद भी सकता हूँ. देख नहीं रही, कैसे सरिया सा हुआ पड़ा है मेरा ये लंड.

इतना कहते हुए मैंने सुनीता को अपने लंड पर झुका दिया और सुनीता को लंड चूसने का इशारा किया.

पहले तो वो अपनी जीभ से मेरे लंड के सुपारे को चाटती रही और फिर उसने मेरे लंड को करीब आधा अपने मुँह में भर लिया. उसका मुँह जैसे कोई गर्म भट्टी थी, जिसमें मेरा लंड पिघलने को तैयार था. पर ये क्या? देखते ही देखते, सुनीता ने मेरा पूरा लंड अपने मुँह में निगल लिया और वो उसको कुछ यूँ चूस रही थी कि मेरी सांसें ही गले में अटक गईं.

ये बिल्ली तो नौ सौ चूहे खाकर हज को चली थी. अभी तक तो बहुत ना नकुर कर रही थी, जैसे कभी लंड को चूमा भी ना हो, पर ये तो लंड चूसने में माहिर निकली.

आह क्या वो शानदार लंड चूस रही थी. सुनीता ने मेरी तो चीखें ही निकाल दी थीं.

मैंने भी अपने हाथ से सुनीता की सलवार के नाड़े को ढीला करके अपनी दो उंगलियां उसकी चुत में डाल दी थीं और उसकी चुत का मर्दन करने लगा था. ताकि इससे उसको जोश और ज्यादा चढ़ जाए.

थोड़ी ही देर में मैंने सुनीता की सलवार को उसके चूतड़ों से नीचे को सरकवा दिया, जिससे मैं आराम से उसकी चुत का मर्दन कर सकूँ.

सुनीता ने मेरे लंड जो अपने हाथ से मुठियाना भी शुरू कर दिया था और मैं किसी भी समय झड़ सकता था. मैंने सुनीता को अपने लंड से हटाने की कोशिश की, पर वो तो एक भूखी रंडी की तरह मेरे लंड को ऐसे जकड़े हुए थी, जैसे उसको उखाड़ कर ही खा जाएगी.

सुनीता को मेरा लंड चूसते तकरीबन 10 मिनट हो गए थे.

सुनीता- बहुत दिनों के बाद लंड मिला है करण सर, आज मत रोकना मुझे. इसके अमृत से मेरे गले तो नम कर दो करण सर.

बस इतना कहकर सुनीता ने फिर से मेरा लंड चूसना शुरू कर दिया. उसके हाथ मेरे लंड की जड़ को थामे थे और मुँह मेरे अन्दर एक लावा पैदा कर रहा था. मेरे अंडकोष जैसे फटने को तैयार थे, पर सुनीता की पकड़ मेरे लंड की जड़ पर इतनी मजबूत थी कि मेरा लावा बाहर नहीं आ सकता था.

अब मेरे अंडकोषों में दर्द होने लगा था, तो मैंने सुनीता के एक चूचुक पर जोर से च्यूंटी भरी, जिससे सुनीता ने एकाएक अपनी पकड़ हल्की की और मेरा लावा उसके पूरे मुँह में भर गया.

सुनीता तेज़ी से मेरे पानी को पीने की कोशिश कर रही थी, पर मेरे लंड ने इतना पानी छोड़ा था कि वो सुनीता के मुँह को भरने के बाद उसके होंठों से रिसता हुआ मेरी जीन्स को भी गीला कर रहा था.

अब बारी थी सुनीता की चुत की. हम अब तक नॉएडा और ग्रेटर नॉएडा एक्सप्रेस-वे के दो चक्कर लगा चुके थे. मैं सतर्क भी था कि कहीं कोई हमें देख ना ले, या हमारा पीछा ना कर रहा हो. मेरी ज़िन्दगी में मैंने पहली बार चलती गाड़ी में सेक्स करने वाला था, वो भी तब … जब गाड़ी मैं खुद चला रहा था.

मैंने सुनीता को इशारा किया, जिसको वो पलक झपकते ही समझ गयी और उसने अपनी सलवार अपने पैरों से अलग कर, मेरी गोद में बैठने की जगह बना ली. मैंने भी अपनी गाड़ी की सीट जितनी हो सकती थी, पीछे की ओर की. सुनीता को अपनी गोद में इस तरह बिठाया कि उसका मुँह भी सड़क की तरफ था.

मैं उन दिनों टवेरा गाड़ी चलाता था और जिन्होंने वो गाड़ी रखी या चलाई है, उनको पता होगा कि उस गाड़ी में टांगों के लिए जगह कितनी ज्यादा होती है. सुनीता आराम से मेरी गोद में आ बैठी थी.

मैंने उससे कंडोम लगाने का कहा, तो वो बोली- रहने दो.

अब मेरा लंड उसकी चुत में जाने को हिलोरें मार रहा था. सुनीता ने अपना एक हाथ पीछे लिया और मेरे लंड को यूँ साधा कि वो आराम से उसकी चुत में चला जाए. मैंने भी एक हाथ उसके सूट के अन्दर कर उसके चुचों को दबाना शुरू किया और उसको हल्के से अपने लंड पर दबाव बनाने का इशारा किया.

इशारा पाते ही सुनीता मेरे लंड पर बैठना शुरू हो गयी. देखते ही देखते, मेरा आधा लंड सुनीता की चुत में था और उसकी सिसकारियों से छलकता दर्द आराम से सुना जा सकता था.

करण- दर्द हो रहा है क्या मेरी जान?
सुनीता- हम्म … मैंने बहुत समय से सिर्फ उंगली से ही काम चलाया है करण सर … और आपका लंड तो मेरी चार चार उंगलियों के बराबर मोटा है. थोड़ा दर्द तो बनता ही है करण सर.
करण- तो अब देर ना कर और जल्दी से इसको पूरा निगल जा. जो मज़ा इस दर्द में है, वो भी इस कायनात में कहीं नहीं मिल सकता.

इतना कहते कहते मैंने अपनी गाड़ी एक अंडरपास में लगाई, गाड़ी में हैंडब्रेक लगाए और सुनीता की कमर को दोनों हाथों से पकड़ कर एक ज़ोरदार झटका उसकी चुत के नीचे से लगा दिया, जिससे मेरा करीब तीन चौथाई लंड सुनीता की चुत में घुस कर फंस गया.

दूसरी तरफ लंड पेवस्त होते सुनीता की और उसका रोना शुरू हो गया. पर इसके साथ ही सुनीता झड़ भी गयी, जैसे उसकी चुत को इस बेरहमी से परम आनन्द मिला हो. उसके रस उसकी चुत से रिसते हुए मेरी जीन्स को और गीला कर रहे थे, जो पहले से ही मेरे पानी से गीली थी.

झड़ने की वजह से सुनीता रोते-रोते ऐसे कांप भी रही थी, जैसे दर्द और सुख की कोई मिश्रित भावना प्रकट कर रही हो.

सभी भाई लोगों को पता होगा कि चुदाई के समय जब लड़की रोती है, तो आदमी को किस अप्रतिम आनन्द की अनुभूति होती है.

मुझे सुनीता का रोना जैसे और उत्तेजक बना रहा था और मेरा लंड पहले से ज्यादा प्रचंड होता जा रहा था. मैंने देर ना करते हुए, एक और ज़ोरदार झटका लगाया, जिससे मेरा पूरा लंड सुनीता की चुत में घुस गया और सुनीता की सिसकारियां उसकी दर्द भरी चिल्लाहटों में बदल गयीं.

पर पिछली बार की ही तरह, सुनीता ने इस धक्के के साथ भी झड़ना शुरू कर दिया, जिससे मुझे ये यकीन हो गया कि सुनीता को खुश करने का माध्यम ताबड़तोड़ और बेरहम चुदाई ही है. इस दूसरे धक्के से मेरे लंड में भी ऐसा सा दर्द हुआ, जैसे वो इस टाइट चुत में जाने से कुछ छिल सा गया हो. मैंने इसके बारे में सुनीता को बताया, तो उसके चेहरे पर एक धीमी पर कमीनी मुस्कान नज़र आयी.

मैंने अब सुनीता को थोड़ा धीरे धक्के लगाने को कहा और साथ ही उसको सहलाना शुरू कर दिया … जिससे कि वो मुझे खूब मज़ा दे सके.

सुनीता को भी अभ्यस्त होने में करीब 25-30 धक्कों का समय लगा.

अब सुनीता ने भी अपनी गांड उठा उठा कर मज़ा लेना शुरू कर दिया था. मैंने भी वहां ज्यादा देर रुकना सही नहीं समझा और गाड़ी को फिर से एक्सप्रेस-वे पर डाल दिया. मैं ऐसी दौड़ती हुई धमाकेदार चुदाई पहली बार कर रहा था और सुनीता भी बहुत कामुक थी.

अभी तक तो बेदर्दी मैंने दिखाई थी और अब बारी सुनीता की थी. जैसे मैंने उसको दर्द दिया था, वैसे ही मुझे दर्द देने के लिए वो और ज्यादा उछल कूद मचा रही थी. किसी गरम चुत को छिले हुए लंड की सवारी मिल रही हो, तो वो कैसी मस्त हो जाती है, मुझे किसी को बताने की जरूरत नहीं.

सुनीता बीच बीच में अपने मुँह को पीछे करके मुझे चूमने चाटने की कोशिश कर रही थी. वो मेरे चेहरे पर छिले लंड के दर्द के भाव देखकर खुश होती और ‘मेरा बेबी … मेरा सोना.’ कहकर मेरी टांग भी खींच रही थी.

मैं इन सबसे बहुत उत्तेजित हो रहा था, पर सुनीता एक बार मेरा पानी गिरा चुकी थी … इसलिए मुझे झड़ने में थोड़ा समय लग रहा था.

मैं भी थोड़ी थोड़ी देर में सुनीता की गांड में उंगली कर देता, जिससे उसको और अधिक आनन्द मिलता.

सुनीता दो बार झड़ चुकी थी और मेरा भी लावा उबलने लगा था. थोड़ी ही देर में मेरा लंड फटने वाला था और मुझे पता था कि वो इतना पानी गिराने वाला है कि आज मेरी गाड़ी में जलजला आ जाएगा. सुनीता ने भी अपनी गति बढ़ा दी थी. मेरा लंड भी उसकी चुत की गर्मी के आगे पिघल गया और मेरे लंड ने अपनी पिचकारी सुनीता की चुत में मार दी.

जैसे ही मेरा गरम लावा सुनीता की चुत में गिरा, सुनीता भी एक बार फिर से चिल्लाते हुए झड़ने लगी और हम दोनों अपने ही रसों से पानी पानी हो गए.

गाड़ी का एसी अपने पूरे जोश से गाड़ी को ठंडा कर रहा था, फिर भी हम दोनों पसीने से लथपथ थे.

थोड़ी देर बाद हम एक दूसरे से अलग हुए और मैंने सुनीता से पूछा कि गीली सलवार के साथ कैसे मैनेज करेगी. तो सुनीता ने बताया कि जब आप मेरा नाड़ा खोल रहे थे, तो वो खुला नहीं था बल्कि टूट गया था और अब उसको एक नयी सलवार की जरूरत है.

मैंने पहले गाड़ी साइड में लगाई और डिग्गी में रखे अपने जिम बैग से अपना पजामा निकाल कर उसे पहना दिया.

अब मैंने गाड़ी वापस सेक्टर 18 की तरफ ले ली. वहां से मैंने सुनीता के लिए एक स्लैक्स खरीदी. हमने मैकडोनल्ड से बर्गर और फ्रेंचफ्राइज लिए. इसके बाद मैंने सुनीता को पैसे देकर, उसकी बताई जगह पर ड्राप कर दिया.

ड्राप करने से पहले मैंने सुनीता की एक पप्पी भी ली, जिसको देते हुए उसने मेरे होंठों पर इतनी बुरी तरह काटा कि मेरे होंठों से खून तक निकल गया.

इसके बाद मेरी और सुनीता की कई बार मुलाकातें हुई और हमने हर बार सेक्स भी किया, पर वो गाड़ी वाला सेक्स दोबारा कभी नहीं हुआ.

उस रात को मैं जब भी याद करता हूँ, तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं और मैं सोचता हूँ कि शायद वो जवानी ही थी, जो मुझसे ऐसा काम करवा गयी.

कुछ सालों बाद सुनीता ने दूसरी शादी कर ली और उसके बाद उसने मुझसे सब सम्बन्ध तोड़ दिए.

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