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जीजाजी से सील तूङवाई

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मेरा नाम कल्पना है पर मुझे प्यार से सब कल्पना कहते हैं। मेरी उम्र 21 साल है और मेरे घर में मेरे अलावा दो बहनें हैं, छोटी का नाम दीक्षा है, उसकी उम्र 19 साल है, मेरे से बड़ी दीदी सुरभी की शादी हो चुकी है, वह 23 साल की है, मेरे जीजा अमित चंडीगढ़ में रहते हैं और उनका मोबाइल फोन का बिजनेस है।

यह सच्ची घटना आठ महीने पहले की है।

उस रात को मैं कैसे भूला दूँ जब जीजा अमित ने मेरे कुंवारेपन की झिल्ली फाड़ी थी और अपना मजबूत लौड़ा मेरी चूत में गाड़ दिया था। कभी कभी मैं नींद से जाग जाती हूँ क्यूंकि मुझे आज भी वो लौड़ा याद आता है; लेकिन मज़बूरी है और वो लौड़ा अब मुझे शायद कभी नहीं मिलेगा।

आइये आप को अब उस रात और उसके पहले और बाद की घटना बताती हूँ।

मेरी दीदी सुरभी का एक दिन फोन आया, उसकी आवाज हल्की सी ढीली और जैसे कि वो बीमार हो, ऐसी लग रही थी।
मैंने उसे पूछा- क्या हुआ?
तो वो बोली- बहुत बीमार हूँ, मलेरिया हुआ है, बदन में कमजोरी के कारण घर का काम नहीं कर सक रही।
मुझसे यह सुन कर रहा नहीं गया।
मैं- अरे दीदी, अगर आप कहो तो मैं आ जाऊँ? वैसे भी मेरे कॉलेज में 10 दिन की छुट्टी हैं।
सुरभी- अगर तू आ सकती है तो आ जा! पर तेरे जीजा के पास काम का अभी बहुत रश है, इसलिए वो लेने नहीं आ सकेंगे!
मैं- कोई बात नहीं दी, मैं पापा के साथ आ जाऊँगी।
सुरभी- ठीक है, कल ही आ जा!

अगले दिन दोपहर बाद मुझे पापा ने बस में बिठा दिया। मेरी उम्र के हिसाब से मेरा कद और काठी काफी बड़ा है, मैं किसी मॉडल से कम सुंदर नहीं हूँ, बस के अंदर हर एक लौड़ा मुझे देख रहा था पर मेरे मन में इस से गुस्सा नहीं बल्कि घमंड आ रहा था, मेरे मन में तो अपने पति को लेकर बहुत बड़े बड़े सपने थे, मुझे ऐसा पति चाहिए थे जो शाहरुख़ जितना सेक्सी और सलमान जितना चौड़ा हो। चंडीगढ़ पहुंचते ही मैं ऑटो लेकर दीदी के घर चली गई। मैंने देखा कि दीदी बहुत कमजोर हो गई है और उसे बहुत तकलीफ हो रही थी। मैंने उसे दवाई वगैरह के लिए पूछा तो उसने बताया कि दवाई चल ही रही है।

मैं- जीजाजी कहाँ हैं?
दीदी- अरे अभी आईफोन का 5 नंबर लॉन्च हुआ है उसमें लगे पड़े हैं। उन्होंने तो मुझे कहा कि शोरूम पर नहीं जाता, पर मैंने उन्हें जबरदस्ती से भेज दिया। एक दिन में अभी 20 हजार कमाने का मौका है, वो थोड़े ही बार बार आता है।
मैं- ठीक है दी, अब तू घबरा मत, मैं यही हूँ कुछ दिन! तेरा और मेरे जीजा का पूरा ख्याल रखूंगी।
दीदी- अच्छा है तू आ गई, कल तो मुझे होटल से खाना मंगवाना पड़ा।
मैं- चल मैं आज तेरी पसंद के राजमा चावल बनाती हूँ।

मैं फ्रेश होकर रसोई में गई और राजमा बनाने लगी। सुरभी को राजमा पहले से बहुत पसंद हैं। रात के 8 बजे तक मैं खाना बना चुकी थी। खाना बनाने के बाद मैंने कहा- जीजाजी आ जाएँ रो इकट्ठे खाना खाएँगे!

लेकिन सुरभी ने कहा- उनका अभी कोई ठिकाना नहीं है।

इसलिए हम दोनों बहनों ने खाना खा लिया। सुरभी को दवाई देकर मैंने सुला दिया और ड्राइंग रूम में जाकर मैं डिस्कवरी चैनल देखने लगी। टीवी देखते देखते दस कब बजे, पता ही नहीं चला।

इतने में घर का मुख्य दरवाजा खुला और जीजाजी अंदर आये, उसने मुझे देखा नहीं और वो फोन पर किसी से लड़ रहे थे।

जीजा- लौड़ा मेरा, साले तुम लोग पार्सल के रेट मन चाहे तरीके से बढ़ा देते हो! अगर ऐसा ही चला तो मुझे नहीं मंगवाना कुछ भी अब!
उन्होंने मुझे देख कर तुरंत फोन काट दिया और बोले- अरे कल्पना, कब आई तू? मुझे बताया भी नहीं, मैं गाड़ी लेकर आ जाता।
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मैं- नहीं जीजाजी, आप बीजी हैं! दी ने बताया मुझे!
जीजा- अरे साली के लिए क्या बीजी क्या फ्री!

मैंने देखा कि जीजा जी को चलने में तकलीफ हो रही थी, उनके पाँव इधर उधर होने लगे थे। वो शायद शराब पी के आया था और इस बात की पुष्टि तब हुई जब वो मेरे पास आकर सोफे पर बैठे, जीजा फुल टुन्न होकर आया था, उसके मुँह से शराब की मुश्क आ रही थी। उनसे सही बैठे भी नहीं जा रहा था..

मैंने उनसे खाने के लिए पूछा- जीजा जी खाना लगा लूँ?
जीजा- नहीं, मैं बाहर खाकर आया हूँ, तेरी दीदी जाग रही है?
मैं- नहीं दीदी को सोये तो काफी समय हो गया है।
जीजा- ओके!

उन्होंने अपनी टाँगें सोफे पर फ़ैलाई और आँखें बन्द करके लेट गए। उन्होंने अपने जूते, कपड़े ऐसे ही पहने हुए थे और वो सो गए। मैंने कहा भी यह सब उतारने के लिए लेकिन वो कुछ बोले ही नहीं, वो शायद नशे में सो चुके थे।

मैंने सोचा चलो मैं ही जीजा के जूते उतार देती हूँ। मैंने जीजा के पाँव अपनी गोद में लिए और जूते की डोरी खोल कर उतार फेंके। मैंने देखा कि जीजे की पैंट के ऊपर की बेल्ट बहुत टाईट बंधी हुई थी, मैंने सोचा कि इसे भी खोल दूँ। मैं बेल्ट को खोल रही थी, तभी मेरी नजर उसके नीचे पड़ी जहाँ एक बड़ा पर्वत जैसा आकार बना हुआ था।

क्या जीजा का लौड़ा इतना बड़ा था..!?!

पता नहीं क्यूँ, पर मेरे मन में गुदगुदी होने लगी, मेरा मन कूद रहा था अंदर से ही! मैंने इससे पहले लौड़ा सिर्फ नंगी मूवीज में ही देखा था लेकिन जीजा का लौड़ा तो पैंट के ऊपर इतना बड़ा आकार बना कर बैठा था कि देख कर ही मुझे ख़ुशी मिल रही थी।

मैंने बेल्ट को खोलने के साथ साथ उनके लौड़े के ऊपर हल्के से अपने हाथ का पीछे वाला हिस्सा लगा दिया। जीजाजी का लौड़ा बहुत सख्त लग रहा था। उनके लौड़े को छूने के बावजूद जीजा हिले नहीं और इससे मेरी हिम्मत बढ़ गई, मैंने अब अपना हाथ पूरा रख के लौड़े को अहसास लिया। लौड़ा काफी गरम था और मुझे उसको हाथ लगाते ही चूत के अंदर खुजली होने लगी।

मैं तब तक तो कुंवारी ही थी, मैंने केवल उंगली डाल कर हस्तमैथुन किया था बस!
सच में बड़ा भारी लौड़ा था! खोल के देख लूँ? जीजा तो नशे में थे!

मेरे मन में लौड़ा देखने के भयानक विचार आने लगे। मैंने सोचा कि जीजा तो वैसे भी नशे में हैं तो पैंट खोली तो उन्हें थोड़े ही पता चलेगा। मैंने धीरे से उनकी ज़िप खोली और देखा कि लौड़ा अंदर अंडरवीयर में छिपा बैठा था। मैंने बटन खोल कर जीजा की पैंट उतार दी।

पता नहीं मुझे क्या हुआ था, मुझे अच्छे बुरे की कोई समझ नहीं रही थी, मैं अपने हाथ को लौड़े के ऊपर रख कर उसे दबाने लगी, फिर मैंने धीरे से अंडरवीयर को खींचा और बालों के गुच्छे के बीच में विराजमान महाराजा को देखा। अच्छा तो यह है लौड़ा!

मैंने पहली बार लाईव लौड़ा देखा था, बिल्कुल मेरी आँखों के सामने जो आधे से भी ज्यादा तना हुआ था। मेरे हाथ रुके नहीं और मेरे दिल में आया कि उसे छू लूँ एक बार!

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जैसे ही मैंने लौड़ा हाथ में लिया, जीजा की आँख खुल गई और वो बोले- कल्पना, क्या कर रही है?
मैं- कुछ नहीं जीजा जी, आप के कपड़े खोल रही थी। आप नींद में थे और आपने जूते वगैरह कुछ नहीं उतारे थे।
जीजा- मुझे पता है कि तू क्या कर रही थी। मैं सोया था लेकिन तूने हाथ लगा कर सहलाया तब मेरी नींद उड़ गई थी और फिर मैं सिर्फ आँखें बंद करके लेटा हुआ था।
मैं डर गई कि कहीं जीजा दीदी को ना बता दें।

लेकिन उसके बाद जीजा जो बोले, वो बहुत ही अलग और आश्चर्यजनक था।
जीजा- इतना ही लौड़ा लेने का शौक है तो कपड़े उतार दे देता हूँ।

मैं क्या बोलती, मुझे लौड़ा सिर्फ देखना था लेकिन अब जीजा थोड़े ही मानने वाला था। मुझे कभी ना कभी तो नथ उतरवानी थी, फिर आज क्यों नहीं, मैं कुछ नहीं बोली।
लेकिन जीजा के हाथ अब मेरे चूचों के ऊपर थे और वो उन्हें जोर से दबा रहे थे। मैंने आँखें बंद कर ली।

जीजा सोफे से खड़े हुए और शर्ट उतारने लगे। वो बिल्कुल नंगे हो गए और उसने मुझे कंधे से पकड़ के मेरी नाईटी उतारने के लिए हाथ ऊपर करवा दिए। मैं अगले ही मिनट में उसके सामने नंगी हो गई।

जीजा मेरे चूचों को अपने मुँह में लेकर चूसने लगे। उनके गरम गरम होंठ का अहसास जान निकाल देने वाला था। मुझे अजीब सी खुमारी छा रही थी। मैंने देखा कि जीजा के हाथ अब कमर के ऊपर होते हुए मेरे चूतड़ों तक पहुँचे और मुझे अपनी तरफ खींचा।

जीजा का लौड़ा मेरी चूत वाले हिस्से के बिल्कुल नजदीक आ गया और मुझे जैसे 1000 वाट का करंट लगा हो। जीजा ने अपने होंठ मेरे होंठों से लगाये और मेरे मुँह में व्हिस्की की गन्ध भर गई। वो मुझे चूसते हुए सोफे के ऊपर बैठ गये। मैं अब जीजा की दोनों टांगों के बीच में थी, उन्होंने मेरे हाथों को दोनों तरफ से पकड़ा और मेरा चेहरा लौड़े की तरफ ले गया!

मैं प्रश्न के अंदाज से उन्हें देखने लगी। जीजा ने मेरा मुँह अपने सुपाड़े पर लाकर मुझे छोड़ दिया। मैंने लौड़ा हाथ में लिया और उसकी गर्मी का अहसास लेने लगी। जीजा ने पीछे से मुँह को धकेला और मेरे मुँह खोलते ही उसका लौड़ा आधा मेरे मुँह के अंदर चला गया। ओह माय गॉड! यह तो बिल्कुल मुँह फाड़ रहा था मेरा! उसकी तीन इंच की मोटाई मेरे मुँह के लिए बहुत ज्यादा थी। लेकिन फिर भी मैंने आधे लौड़े को चूसना चालू कर दिया। जीजा ने लंड के झटके मुँह में देने चाहे लेकिन मैंने उनकी जांघें थामे उन्हें नाकाम कर दिया।

जीजा अब सोफे से उठ खड़े हुए और मेरे मुँह को जोर जोर से चोदना चालू कर दिया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

उनका लौड़ा मेरे मुँह से ग्ग्ग्ग.. ग्ग्ग्ग.. गी.. गी.. गी.. गों.. गों.. गोग जैसी आवाजें निकाल रहा था। थोड़़ी देर में मुझे भी लंड चूसने में मजा आने लगा, ऐसे लग रहा था कि चोकलेट वाली आइसक्रीम खा रही थी।

जीजा ने अब मेरे मुँह से लौड़ा बाहर निकाला और मेरी टाँगें फैला कर मुझे सोफे में लिटा दिया, उसके होंठ मेरी चूत के होंठों से लग गए और वो मुझे सीधा स्वर्ग भेजने लगे- आह इह्ह ओह्ह ओह जीजा जी! आह.. ह्ह्ह.. इह्ह.. ..!

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मेरे लिए यह चुसाई का आनन्द मार देने वाला था। जीजा ने चूत के अंदर एक उंगली डाली और वो चूसने के साथ साथ उंगली से मुझे चोदने लगे- आह ह ह ह ह्हीईई आअह्ह्ह्ह के आवाज के साथ मैं झड़ गई।

जीजा ने अब मुँह हटाया और अपना लौड़ा मेरी चूत के ऊपर टिकाया। चूत काफी गीली थी और मुझे पता था कि अब तो फाईट होगी लौड़े और चूत के बीच! जीजाजी ने हाथ में थूक लिया और लौड़े के आगे लगा दिया, एक झटका देकर उन्होंने आधा लंड मेरी चूत में दे दिया-

‘आह्ह.. ह्ह.. आऊ.. ऊऊ.. ऊउइ ..ऊई ..उईईई.. मरर गई रे!’

जीजा ने मेरे मुँह पर हाथ रख दिया और एक और जोर का झटका देकर पूरा लौड़ा मेरी चूत में पेल दिया। मुझे ऐसे लग रहा था कि सारी चमड़ी जल रही हो, मानो किसी ने चूत में लोहे की गरम सलाख घुसा दी हो।

जीजा थोड़़ी देर हिले नहीं पर अब धीरे धीरे से लंड को हिलाना चालू किया। ऐसा अहसास हो रहा था जैसे कि चमड़ी लौड़े के साथ साथ निकल रही थी चूत की!

मेरे आँखों से आँसू की धार निकल कर जीजा के हाथों को लगने लगी। उन्होंने मेरे कान के पास आते हुए कहा- घबरा मत! अभी ठीक हो जाएगा सब!

और सच में मुझे 2 मिनट के बाद लौड़ा सुखदायी लगने लगा। जीजा के झटकों के ऊपर अब मैं भी अपने कूल्हे हिलाने लगी।

जीजाजी ने हाथ मुँह से हटा कर चूचों पर रख दिया और चूत ठोकने के साथ साथ आगे से चूचे मसल रहा था। मैं सुखसागर पर सवार हो गई थी और लौड़ा मुझे ठक ठक ठोक रहा था। जीजा के झटके दो मिनट में तो बहुत ही तीव्र हो गए और वो एकदम स्पीड से मुझे चोदने लगे।

‘आह.. आह.. ओह.. ओह.. ओह!’ जीजा कुत्ते के जैसे फास्ट हुआ और मुझे थोड़़ी देर बाद जैसे की मेरी चूत के अंदर उन्होंने पेशाब किया हो, ऐसा लगा लेकिन वो मूत नहीं बल्कि उसका पिंघला हुआ लोहा यानि वीर्य था। उन्होंने लंड को जोर से चूत में दबाया और सारा के सारा पानी अंदर छोड़ दिया।

मैं उनसे लिपट कर लेट गई और मेरी आँख कब लग गई पता ही नहीं चला।

अब तो बस एक ख्वाहिश है कि मेरे भावी पति का लौड़ा भी ऐसा तगड़ा ही हो।

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